साल 1977 का लोकसभा चुनाव लोकतंत्र बचाओ बनाम तानाशाह इंदरा गांधी।।
आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने यह मान लिया था कि उनके कड़े फैसलों और "20 सूत्री कार्यक्रम" ने जनता को अनुशासित किया है और वह अभी भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने सोचा कि विपक्ष बिखर चुका है, इसलिए चुनाव कराने का यह सही समय है।
📅 चुनाव की घोषणा और विपक्ष का उदय
जनवरी 1977: इंदिरा गांधी ने अचानक लोकसभा चुनाव कराने की घोषणा कर दी।
विपक्ष का पुनर्गठन: जेल में बंद सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं को रिहा कर दिया गया। जेल से बाहर आते ही, उन्होंने एकजुट होने का एक ऐतिहासिक फैसला लिया। कई अलग-अलग पार्टियों (जैसे कांग्रेस (ओ), जनसंघ, भारतीय लोक दल, और सोशलिस्ट पार्टी) ने मिलकर एक नया गठबंधन बनाया, जिसे जनता पार्टी (Janata Party) नाम दिया गया।
नारा: जनता पार्टी का मुख्य नारा था: "लोकतंत्र बचाओ।"
🗳️ चुनाव का माहौल और मुख्य मुद्दा
आपातकाल से पहले, इंदिरा गांधी की छवि एक शक्तिशाली और गरीब-समर्थक नेता की थी ("गरीबी हटाओ")। लेकिन आपातकाल के बाद, लोगों के मन में छिन गई आजादी का दर्द सबसे बड़ा मुद्दा बन गया था।
स्वतंत्रता बनाम सुरक्षा: चुनाव का केंद्र बिंदु यह बन गया था कि भारतीय जनता स्थिरता और सुरक्षा चाहती है या स्वतंत्रता और मौलिक अधिकार।
दमन के किस्से: चुनावी सभाओं में विपक्षी नेताओं ने आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों (जैसे जबरन नसबंदी, राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर पुलिस का दमन, और सेंसरशिप) की कहानियाँ सुनाईं। इन कहानियों ने जनता में आक्रोश भर दिया।
📉 1977 के लोकसभा चुनाव परिणाम
जनता के आक्रोश ने एक अप्रत्याशित और ऐतिहासिक फैसला सुनाया:
पार्टी / गठबंधन जीती गई सीटें
जनता पार्टी गठबंधन 298 (पूर्ण बहुमत)
कांग्रेस 154
1. कांग्रेस की ऐतिहासिक हार
यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की आजादी के बाद की पहली बड़ी हार थी।
सिर्फ पार्टी ही नहीं हारी, बल्कि इंदिरा गांधी खुद रायबरेली सीट से और उनके बेटे संजय गांधी अमेठी सीट से चुनाव हार गए थे। यह दिखाता है कि जनता का विरोध कितना व्यापक और व्यक्तिगत था।
2. उत्तर भारत में कांग्रेस का सफाया
सबसे आश्चर्यजनक परिणाम उत्तर भारत में आए। उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में कांग्रेस लगभग शून्य पर आ गई, जहाँ उसने पहले हर चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था।
💡 परिणाम का महत्व
1977 का चुनाव परिणाम भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बहुत बड़ा संदेश था:
लोकतंत्र की जीत: इस चुनाव ने यह साबित कर दिया कि भारत की जनता चाहे कितनी भी गरीब या निरक्षर क्यों न हो, वह अपनी आज़ादी और मौलिक अधिकारों का मूल्य जानती है। जनता ने वोट के माध्यम से तानाशाही को अस्वीकार कर दिया।
सत्ता का हस्तांतरण: पहली बार, केंद्र में एक गैर-कांग्रेसी सरकार (जनता पार्टी के नेतृत्व में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने) शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता में आई।
संक्षेप में, चुनाव का परिणाम यह था कि लोगों ने बैलेट बॉक्स (मतपेटी) के माध्यम से आपातकाल और उसके दमनकारी कदमों का जबरदस्त विरोध किया, और इस तरह लोकतंत्र को फिर से स्थापित किया।