अखिलेश यादव की रैलियों में उमड़ा जनसैलाब, महागठबंधन के पक्ष में दिखा ज़बरदस्त जोश।।
अखिलेश यादव की रैलियों में उमड़ा जनसैलाब, महागठबंधन के पक्ष में
दिखा ज़बरदस्त जोश।।
पटना/लखनऊ: उत्तर प्रदेश से आई ‘युवा शक्ति’ की
गूँज।।
भले हीं! समाजवादी पार्टी सीधे तौर पर बिहार
चुनाव नहीं लड़ रही है, लेकिन अखिलेश यादव का प्रचार महागठबंधन के
उम्मीदवारों के लिए एक नई ऊर्जा का संचार कर रखा है और चुनावी माहौल को पूरी तरह
से बदल कर रख दिया है।
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी
(सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की
जनसभाओं में भारी भीड़ उमड़ी है, जो बिहार की चुनावी हवा को एक नई दिशा दे दी है। महागठबंधन
(Grand Alliance) के प्रमुख
प्रचारक के तौर पर, अखिलेश यादव की
रैलियों की मांग इस चुनाव में लगातार बढ़ती रही है, जिससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि बिहार की जनता
उन्हें और उनके विचारों को खूब पसंद कीं हैं।
भीड़ ने बढ़ाई महागठबंधन की उम्मीदें
सपा प्रमुख अब तक 20 से अधिक ज़िलों में चुनावी सभाएं कर चुके हैं, जहाँ हर रैली में लोगों
का हुजूम देखने को मिला है। चाहे नवादा हो, रोहतास का नोखा या फिर दरभंगा, अखिलेश यादव के भाषणों को
सुनने के लिए इनके रैलियां में युवाओं, किसानों और महिलाओं की भारी भीड़ जुटी। गठबंधन के नेताओं ने
उनकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए उनके दौरे को आगे बढ़ाने की मांग की है।
अखिलेश यादव अपने भाषणों में मुख्य रूप से
बेरोज़गारी, महंगाई, पलायन और सामाजिक न्याय
के मुद्दों पर ज़ोर दिये हैं।
मुख्य एजेंडा: उनका सीधा हमला भारतीय जनता
पार्टी (BJP) और 'डबल इंजन' की सरकार पर रहा, जिस पर वह युवाओं को धोखा
देने और वादे पूरे न करने का आरोप लगाये।
तेजस्वी पर विश्वास: वह लगातार राष्ट्रीय जनता
दल (RJD) नेता तेजस्वी
यादव को बिहार के अगले मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किये हैं, और उनके नौकरी, 500 रुपये में सिलेंडर और
महिलाओं को 2,500 रुपये मासिक
सहायता के वादों का पुरज़ोर समर्थन किये हैं।
'बदलाव की बयार': अखिलेश यादव ने अपनी रैलियों में कई बार दोहराया है कि
"पूरा देश बिहार की ओर देख रहा है, क्योंकि इस बार बिहार बदलाव का संदेश देने जा रहा है।"
उनका कहना है कि बिहार की जनता ने मन बना लिया है – सरकार भी बदलेगी, और व्यवस्था भी बदलेगी।
युवा मतदाताओं पर सीधा प्रभाव
अखिलेश यादव का युवा और तेज़-तर्रार व्यक्तित्व, साथ ही उनकी हिंदी पट्टी
की राजनीति में मज़बूत पकड़ है, जो बिहार के मतदाताओं को आकर्षित किया है। बिहार में बड़ी
संख्या में ऐसे लोग हैं, जो रोज़गार के
लिए उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में प्रवास करते हैं। अखिलेश, जो ख़ुद उत्तर प्रदेश के
मुख्यमंत्री रह चुके हैं,
उनके पलायन और
रोज़गार से जुड़े मुद्दे लोगों के साथ सीधे तौर पर जुड़ रहे हैं।
एक चुनावी विश्लेषक के अनुसार, "अखिलेश यादव की रैलियों में उमड़ती भीड़ केवल समर्थन नहीं है, बल्कि यह बीजेपी के विरोध में एक बड़े सामाजिक-राजनीतिक समीकरण की एकजुटता का संकेत है। उनका 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नारा बिहार में महागठबंधन के लिए एक बड़ा समर्थन आधार तैयार कर रहा है।"
